बिजली कैसे बनती है | बिजली बनाने के तरीके | How to make electricity in hindi

हैलो दोस्तों, इस लेख में आप बिजली कैसे बनती है | बिजली बनाने के तरीके | How to make electricity in hindi के बारे में विस्तार से पूरी जानकारी जानने वाले हैं। चूँकि हमें आपको यह बताने की तो बिलकुल भी ज़रूरत नहीं है कि बिजली या एलेक्टिसिटी क्या होती है? वर्तमान-समय में बिजली (Electricity) मानव-जाति की मूलभूत सुविधाओं में शामिल हो चुकी है और इसी के चलते बिजली के बिना जीवन की कल्पना कर पाना भी मुश्किल है।

इनके अलावा हम अपने मोबाइल, लैपटॉप आदि से लेकर इनवर्टर एवं आधुनिक इलेक्ट्रिक-कार आदि को चार्ज करने तक बिजली (एलेक्टिसिटी) पर निर्भर हैं। क्या आप जानते हैं कि बिजली बनाने के मुख्य-स्थान ‘पॉवर जेनेरेटिंग स्टेशन’ से कई हजार किमी० की दूरी तय करके बिजली आपके घरों में सुरक्षित ट्रांसमिशन लाइन्स (Transmission lines) या ट्रांसमिशन टॉवर के द्वारा पहुंचाई जाती है। 

हमें पूरी उम्मीद है कि आप इस लेख को अंत तक पढ़कर जरूर जानेंगे कि बिजली कैसे बनती है यानिकि एलेक्टिसिटी कैसे ज़नरेट होती है और इसे कितने प्रकारों से बनाया जाता है? इस आर्टिकल में बिजली बनाने के प्रकारों को विस्तार से बताया गया है; जिसे उम्मीद मुताबिक आप पूरे धैर्य के साथ पढेंगे।

बिजली कैसे बनती है – How to make electricity

यदि आसान भाषा में बात करें कि बिजली कैसे बनाई जाती है तो बिजली बनाने के लगभग सभी प्रकारों में कई तकनीकों के द्वारा टरबाइन (Turbine) को घुमाया जाता है। जिसमे टरबाइन के द्वारा अल्टरनेटर (Alternator) को चलाया जाता है; जिसे सामान्य भाषा में जनरेटर (Generator) भी कहते हैं जोकि पॉवर प्लांटों में अल्टरनेटिव करंट (Alternative Current) को बहुत अधिक मात्रा में उत्पन्न करता है।

जब ‘पॉवर जेनेरेटिंग प्लांट’ में बिजली बनती है तो वह अलग-अलग प्रकार के पॉवर प्लांटों के अनुसार लगभग 11kv-12kv की मात्रा के बीच बनकर तैयार होती है। जिसे जेनेरेटिंग स्टेप-अप ट्रांसफार्मर (Generating Step-Up Transformer) की मदद से 138kv-500kv के बीच बढ़ाकर ट्रांसमिशन लाइन्स (Transmission Lines) की सहायता से आगे भेज दिया जाता है।

इन ट्रांसमिशन लाइन्स को जरूरतों के हिसाब से राज्यों एवं उनके शहरों के पॉवर सब-स्टेशनों (बिजली-घरों) में उतारा जाता है। इन लाइन्स को सबसे पहले पॉवर सब-स्टेशनों में स्टेप डाउन ट्रांसफार्मर (Step Down Transformer) में उतारा जाता है जोकि बिजली को जरूरत के अनुसार 11kv-13kv तक की मात्रा में कम कर देते है।

एलेक्टिसिटी के बिजली-घर या पॉवर सब-स्टेशनों में आ जाने के बाद उसे डायरेक्ट शहरों और गांवों के बीच भेज दिया जाता है। जहाँ एक और डोमेस्टिक स्टेप डाउन ट्रांसफार्मर लगा रहता है जो बिजली को उपयोग-अनुसार 120-240 वोल्टेज में बदल देता है।

इतनी सारी प्रक्रियाओं के बाद ही पॉवर जेनेरेशन प्लांटों से एक लम्बी दूरी तय करके हमारे घरों में बिजली सुरक्षित रूप से पहुँच पाती है। 

बिजली बनाने के प्रकार –   Types of making electricity in hindi

बिजली बनाने के अलग-अलग तरीके या बिजली कितने प्रकार से बनाई जाती है? तो बिजली दुनियाभर में कई प्रकार की तकनीकों के द्वारा बनाई या उत्पन्न की जाती है।  

  • Thermal power (थर्मल पॉवर प्लांट)तापीय ऊर्जा
  • Hydropower (हाइड्रोपॉवर प्लांट) पनबिजली उर्जा
  • Nuclear power (नुक्लेअर पॉवर प्लांट)परमाणु उर्जा संयंत्र 
  • Wind power (विंड पॉवर प्लांट)पवन उर्जा
  • Biomass power (बायोमास पॉवर प्लांट)बायोमास उर्जा
  • Solar energy (सॉलर एनर्जी प्लांट)सौर उर्जा
  • Tidal wave energy (टाइडल वेव एनर्जी प्लांट)ज्वारीय तरंग ऊर्जा
  • Geothermal energy (जियोथर्मल एनर्जी प्लांट) भूतापीय उर्जा
  • Diesel engine power (डीजल इंजन पॉवर प्लांट)डीजल इंजन ऊर्जा
  • Gas turbine power (गैस टरबाइन पॉवर प्लांट)गैस उर्जा

थर्मल पॉवर प्लांट (Thermal power plant)

चलिए जानते हैं कि कोयले से बिजली कैसे बनती है? जैसे कि नाम से ही पता चलता है कि इस प्लांट में उष्मीय उर्जा का इस्तेमाल करके विधुत (Electricity) का उत्पादन किया जाता है।

इस प्लांट में मुख्य रूप से उर्जा प्राप्त करने के लिए कोयले (Coal) का प्रयोग किया जाता है। मतलब कोयले को बायलर (Boiler) में डालकर उसे जलाकर उत्पन्न ऊष्मा द्वारा पानी की भाप (Steam) तैयार की जाती है जोकि इस भाप का तापमान लगभग 540 डिग्री सेल्सियस से 1000 डिग्री सेल्सियस तक होता है। 

इस भाप के अधिक दबाव द्वारा टरबाइन को चलाया जाता है। टरबाइन जोकि कई पंखडियों का समूह होता है; इन पंखडियों पर अधिक उच्च दबाव की भाप को बहुत तेजी से गुजारा जाता है जो टरबाइन को तेजी से घुमाने लग जाता है चूँकि टरबाइन अल्टरनेटर से जुड़ा रहता है जोकि विधुत (बिजली) उत्पन्न करना शुरू कर देता है। 

हम यह भी कह सकते हैं कि ‘टरबाइन पूरे प्लांट का दिल होता है’ जिसे घुमाने के लिए अधिक ताप की भाप (स्टीम) की आवश्यता होती है

चूँकि इस प्लांट में सबसे मुख्य कार्य कोयले का होता है। जिसे प्लांट में बहुत अधिक मात्रा (लगभग 10 लाख – 15 लाख टन) में स्टोर किया जाता है जोकि अगले 30 से 40 दिनों तक का स्टोरेज होता है। इसके अलावा हम यह भी कह सकते हैं कि इस प्लांट में लगभग 50% हिस्सा केवल कोयले से घिरा रहता है। इसके अलावा इस प्लांट में पानी की भी अधिक आवश्यकता होती है; जिसके चलते पानी को प्लांट के पास बहुत अधिक मात्रा में इकठ्ठा किया जाता है।  

इस तकनीक में कोयले को बायलर में डालने से पहले बारीक पाउडर के रूप में पीस लिया जाता है जिससे की कोयला अच्छे से जलता है।

बता दें कि बायलर (Boiler) में जो पानी डाला जाता है। वह पाइपों के रूप में रहता है जोकि आग के बीचों-बीच होती हैं जो बहुत अधिक गर्म (सुपर-हॉट) हो जाती है और बहुत मात्रा में भाप (स्टीम) उत्पन्न करती हैं।

जैसे कि आप जानते हैं कि कोयला जब जलता है तो बहुत अधिक मात्रा में प्रदूषित कणों (कोयले की हल्की राख) के साथ धुएं के रूप में बाहर निकलता है। इसी के चलते सभी प्लांटों में चिमनी के उपर इलेक्ट्रो स्थैतिक प्रेसिपिटेटर (Electro Static Precipitator) लगा रहता है जोकि धुंए से कोयले की हल्की राख को लगभग साफ़ कर देता है। इसके अलावा जले हुए कोयले की भारी-राख (Heavy ash) को छानकर सीमेंट कंपनियों को दे दिया जाता है।   

टरबाइन को चलाने के बाद बची हुई भाप को वापिस बायलर में भेज दिया जाता है क्योंकि टरबाइन के नीचे एक चैम्बर होता है; जिसे कंडेसर कहते हैं। इसमें भाप इकट्ठी होती रहती है और वह ठंडी होकर पानी बन जाती है। इसके अलावा बची हुई भाप को ठंडा करके पानी बनाने के लिए कुलिंग टावर का इस्तेमाल भी किया जाता है। 

थर्मल पॉवर प्लांट से बनाई हुई बिजली को हाई पॉवर ट्रांसफार्मर से जोड़ दिया जाता हैं; जिन्हें स्टेप-अप ट्रांसफार्मर कहते हैं। इसके बाद अधिक मात्रा की बिजली को ट्रांसमिशन लाइन्स के द्वारा आगे शहरों में सब-पॉवर स्टेशन्स (बिजली घरों) में भेज दिया जाता है। 

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हाइड्रोपॉवर प्लांट(Hydropower plant)

चलिए जानते हैं कि बांध से बिजली कैसे बनाई जाती है? तो यहप्रक्रियाहाइड्रोपॉवर प्लांट तकनीक के द्वारा संपन्न होती है। जिसमे पानी की उचित मात्रा को इकठ्ठा करके उसे ऊंचाई से नीचे गिराकर टरबाइन को तेजी से घुमाया जाता है और यही टरबाइन अल्टरनेटर को चलाने का काम करता है जोकि बिजली उत्पन्न करता है।  

इन प्लांटों के लिए पानी भरने के लिए बड़े-बड़े पानी के बाँध या डेम बनाए जाते हैं जोकि नदी/समुंद्र किनारे स्थित होते हैं। इसके अलावा छोटे-छोटे प्लांटों के लिए नदियों का इस्तेमाल भी किया जाता है। 

बता दें कि बाँध बड़ी-बड़ी और मजबूत दीवार बनाकर खड़े किये जाते हैं और उसके पीछे पानी भर दिया जाता है जोकि पानी का बहुत बड़ा हिस्सा होता है। इसके बाद भरे हुए पानी को एक छोटे से गलियारे से बाहर निकाला या छोड़ा जाता है क्योंकि इस गलियारे के बीच में टरबाइन लगा रहता है जो पानी के भयानक प्रेशर से बहुत अधिकता में घूमता है। जिसके कारण अल्टरनेटर चलता है और बिजली (एलेक्टिसिटी) उत्पन्न होने लग जाती है। 

टरबाइन को चलाने के बाद निकले पानी को सिंचाई के रूप में उपयोग में लाया जाता है। बता दें कि हाइड्रोपॉवर प्लांट शहरों से बहुत अधिक दूरी पर बनाए जाते हैं। इसी कारण इस प्रक्रिया से बिजली बनाने से ट्रांसमिशन लाइन्स में अधिक खर्चा आता है। 

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न्यूक्लिअर पॉवर प्लांट(Nuclear power plant)

न्यूक्लिअर पॉवर प्लांट बिजली उत्पन्न करने का एक बहुत अच्छा तरीका है, लेकिन यह खतरनाक भी है क्योंकि इसमें कड़ी सुरक्षा के बाबजूद भी प्राकृतिक आपदाओं के चलते रिसाव के खतरे का डर हमेशा बना रहता है।

चलिए अब बात करते हैं कि आखिर कैसे ‘न्यूक्लिअर पावर प्लांट’ से बिजली (एलेक्टिसिटी) पैदा करी जाती है? इस प्रकार के पॉवर प्लांट में ईंधन के रूप में यूरेनियम-235 पदार्थ का इस्तेमाल किया जाता है जोकि परमाणु के विखंडन से अधिक मात्रा में उष्मीय-उर्जा उत्पन्न करता है। मतलब यूरेनियम का न्यूक्लिअर रिएक्शन कराकर प्रक्रिया की जाती है जोकि अधिक मात्रा में उष्मीय ऊर्जा उत्पन्न करते हुए विखंडन श्रंखला प्रतिक्रिया को बनाए चला जाता है।

न्यूक्लिअर रिएक्शन से पैदा होने वाली उष्मीय ऊर्जा के बीच अधिक मात्रा में भाप (स्टीम) पैदा करने के लिए पानी से भरी पाइप्स लगा दी जाती हैं। यह उर्जा पाइप्स में मौजूद पानी को लगभग 500 डिग्री सेल्सियस से 600 डिग्री सेल्सियस ताप पर गरम करके अधिक मात्रा में भाप उत्पन्न करने लग जाती है। इसके बाद भाप के अधिक दाब द्वारा टरबाइन में लगी पंखडियां तेजी से घूमने लग जाती हैं जोकि अल्टरनेटर को चलाना शुरू कर देती हैं और बिजली पैदा या उत्पन्न होना शुरू हो जाती है।   

इसन्यूक्लिअर पॉवर प्लांट में भी बची हुई भाप को वापिस पानी के साथ मिलकर पुनः इस्तेमाल कर लिया जाता है।

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विंड पॉवर प्लांट (Wind powerplant plant)

यदि बात करें कि आकाश में बिजली कैसे बनती है? तो इसके लिए विंड पॉवर प्लांट या विंड टरबाइन प्रक्रिया का इस्तेमाल किया जाता है। इन प्लांटों में बड़े-बड़े पंखे होते हैं जिन्हें आम भाषा में पवन-चक्की भी कहते हैं। इन्हें समुंद्र में, समुंद्र किनारे और पहाड़ी इलाकों में लगाया जाता है ताकि इन्हें नियमित रूप से हवा (एयर) मिले जिससे कि यह लगातार घूमते रहें।

यदि विंड टरबाइन की बनाबट की बात करें तो इनका निचला हिस्सा बहुत मजबूत बनाया जाता है जोकि उपर तक टुकड़े-टुकड़े करके जोड़ा जाता है। यह टॉवर या पॉल एरिया के अनुसार औसतन 80 फीट से 100 फीट तक के होते हैं। यह पॉल अन्दर से खोखले होते हैं जिससे कि रिपेयरिंग करने के लिए इनके अन्दर आसानी से सीडियों द्वारा छडा जा सकता है। इसके अलावा इन टॉवर के अन्दर से ही बिजली की केविलों को नीचे सुरक्षित लाया जाता है।

यदि विंड टरबाइन (पवन-चक्की) के उपर हवा में लगे ब्लेडों (पंखडियों) की बात करें तो इनकी मात्रा तीन होती है जो लगभग 60-60 फीट लम्बे होते हैं।  

बता दें कि भारी-भरकम टॉवर और इनकी पंखड़ियों को इनस्टॉल करना बहुत मसक्कत का काम होता है; जिसमे बिजली बनाने वाला अल्टरनेटर पंखड़ियों के पीछे उपर ही रखा जाता है। विंड टरबाइन के पंखड़ियों के पिछले भाग का नाम निकिल (Nacelle) होता है जिसके अन्दर गियरबॉक्स, ब्रकिंग-सिस्टम, टरबाइन और अल्टरनेटर (जनरेटर) लगा रहता है।

आपने ज्यादातर पवन चक्कियों को धीमे-धीमे घूमते हुए देखा होगा। लेकिन यह बराबर मात्रा में लगातार बिजली (एलेक्टिसिटी) उत्पन्न करती रहती हैं क्योंकि पवन-चक्की के पंखडियों का एक चक्कर अन्दर रखे गियारबॉक्स के द्वारा टरबाइन को लगभग 100 बार घुमा देता है; जिससे कि टरबाइन खुद ही अधिकतम मात्रा ग्रहण कर घूमना शुरू कर देता है।

इससे साफ़ होता है कि पवन-चक्की के पंखों के आसपास हवाओं की गति कम या अधिक होती रहती है लेकिन यह लगातार काम करता रहता है। बता दें कि पवन-चक्की के ऊपरी भाग निकिल में लगे टरबाइन को अधिकतम गति 80 किमी/घंटा की आवश्यकता होती है इसके बाद टरबाइन खुद से अपनी गति बढ़ा लेता है। 

निकिल भाग में लगा ब्रेकिंग-सिस्टम आँधी-तूफ़ान आने के दौरान काम करता है क्योंकि तेज हवाओं से पंखडियों की गति सीमित गति से जैसे ही तेज होती है तो ब्रेकिंग-सिस्टम उस गति को धीमा करके समानतम गति कर देता है। मतलब यह ब्रेकिंग-सिस्टम गियरबॉक्स की गति को घटा देता है। 

अब हम समझ सकते हैं कि गियरबॉक्स पंखे के ब्लेडों गति बढाने का काम करता है तो वहीं ब्रेकिंग-सिस्टम गति को कम करने का काम करके बैलेंस करता है।  

चूँकि हवाएं चारों तरफ की दिशाओं में बदल-बदल कर बहती हैं तो इसी को देखते हुए निकिल के पिछले हिस्से में अनिमोमीटर (Anemometer) लगा रहता है जोकि हवाओं की दिशा को देखते हुए पवन-चक्की के यो (Yaw) भाग से पूरे पंखे (पंखड़ियों) को हवा की तरफ घुमा देता है। मतलब हवा किसी भी तरफ से चले विंड टरबाइन के निकिल का पूरा हिस्सा तीनों ब्लेड्स-सहित हवा की तरफ खुद ही घूम जाते हैं।

चूँकि विंड पॉवर प्लांट या पवन चक्की में रोटेटर के साथ टरबाइन को जोड दिया जाता है और टरबाइन के द्वारा अल्टरनेटरको चलाया जाता है। जिससे बिजली पैदा या उत्पन्न होने लग जाती है। इसके बाद एलेक्टिसिटी को केविल्स की द्वारा नीचे भेज दिया जाता है। जिसमे नीचे स्टेप-अप ट्रांसफार्मर लगा होता है जो बिजली की मात्रा को अधिकता में बढाकर पॉवर स्टेशन की ओर भेज देता है और फिर ट्रांसमिशन लाइन्स में माध्यम से बिजली को जरूरत के हिसाब से शहरों में भेज दिया जाता है।   

इस प्लांट में ध्यान देने वाली बात है कि यह वातावरण को देखते हुए बहुत लाभकारी होते हैं लेकिन काफी महंगे होते हैं और इनके मेंटेनेंस में अधिक खर्चा आता है। इसके अलावा इन्हें हर जगह नहीं लगाया जा सकता है।

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बायोमास पॉवर प्लांट (Biomass power plant)

यदि बायोमास पॉवर प्लांट की बात करें तो इसमें जीवाश्म ईंधन (Fossil Fuel) जोकि खेती से बचा घास-फूस, पुराने पेड एवं गेहूं के ऊपरी छिलके आदि को बारीक पीसकर बुरादा बना लिया जाता है। इस बुरादे के जरिए आग को जलाया जाता है जोकि पानी-भरी पाइप्स को गरम करके अधिक मात्रा में भाप (स्टीम) पैदा करता है।

इसके बाद इस भाप के अधिक दबाव से टरबाइन को घुमाया जाता है। जिससे अल्टरनेटर को चलाया जाता है और बिजली उत्पन्न कर ली जाती है। इसके बाद बिजली (एलेक्टिसिटी) को ट्रांसमिशन लाइन्स के द्वारा उपयोग के लिए आगे भेज दिया जाता है।

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सॉलर एनर्जी प्लांट (Solar energy plant)

सॉलर एनर्जी को भविष्य की ग्रीन-ऊर्जा के रूप में शुरूआत से ही देखा जाता रहा है जोकि कई प्रकार की तकनीकों के माध्यम से प्राप्त की जाती है।

इसमें पहले प्रकार के प्लांट की बात करें तो इसमें बहुत सारे ‘सॉलर पॉवर रिफ्लेक्टर’ ख़ाली मैदान में लगा दिए जाते हैं। जिनका एक साथ पूरा रिफ्लेक्शन सामने खड़े टॉवर पर पढता है। जिसके अन्दर पानी बहता रहता है और वह पानी रिफ्लेक्शन से गर्म होकर अधिकता में वाष्प (स्टीम) पैदा करता है। और यह वाष्प या भाप टरबाइन को चलाने का काम करती है जिससे अल्टरनेटर चलता है और बिजली पैदा होती है।  

इसमें यदि दूसरे प्रकार की बात करें तो इसमें बड़े-बड़े सॉलर-पैनल ख़ाली मैदानों में लगा दिए जाते हैं। इसके बाद जैसे ही उनके ऊपर धूप गिरती है तो डीसी करंट या डायरेक्ट कर्रेक्ट उत्पन्न होता है और फिर इस करंट को इन्वर्टर सिस्टम जैसी तकनीक से एसी या अल्टरनेटिव करंट में परिवर्तित करके उपयोग के लिए आगे भेज दिया जाता है।   

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टाइडल वेव एनर्जी प्लांट (Tidal wave energy plant)

टाइडल वेव एनर्जी एक-दम आधुनिक एवं एडवांस बिजली बनाने की तकनीक है और इसे भी भविष्य की बिजली बनाने की तकनीक के रूप में देखा जा रहा है। लेकिन अभी इसे कुछ ही जगहों पर इस्तेमाल में लिया जा रहा है।   

इस प्लांट में पानी (समुन्द्र) के अन्दर बिजली बनाई जाती है। जैसे कि हम उपर्युक्त लेख में हाइड्रोपॉवर प्लांट के रूप में पढ़ चुके हैं। लेकिन यह बिजली बनाने की तकनीक हाइड्रोपॉवर तकनीक अलग है क्योंकि इसमें समुन्द्र की अंदरूनी लहरों (Waves) के द्वारा बिजली उत्पन्न की जाती है। या फिर यूं कहें कि जब समुन्द्र में ज्वार-भाटा (Tide) आता है तो उनके बीच में टरबाइन को लगा दिया जाता है जो घूमता है और अल्टरनेटर (जनरेटर) को चलाकर बिजली उत्पन्न करता है। इसके बाद बिजली को उपयोग अनुसार आगे भेज दिया जाता है।   

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जियोथर्मल एनर्जी प्लांट (Geothermal energy plant)

जियोथर्मल एनर्जी तकनीक बिजली उत्पन्न करने का एक बहुत अच्छा तरीका है क्योंकि यह भी एनवायरमेंट को किसी भी तरह नुकसान नहीं पहुंचाता है, लेकिन इसे दुनियाभर में महज कुछ ही जगह पर इस्तेमाल में लिया जाता है।  

यह तकनीक कैसे काम करती है? इसके लिए यह जान लें कि प्रथ्वी के केंद्र में लावा भरा हुआ है; जिसका तापमान कई हजार डिग्री सेल्सियस है जोकि कभी-कभी प्रथ्वी की सतह के नजदीक आ जाता है। इस लावे की इतनी गर्मी होती है कि प्रथ्वी के कुछ किलोमीटर अन्दर खड्डा खोदने पर अधिकता में गर्मी महसूस होने लग जाती है।

इस तकनीक को सम्पूर्ण करने में सबसे बड़ा योगदान पानी का होता है जो बारिश के समय प्रथ्वी के अन्दर घुस जाता है और अन्दर रहकर गर्म होता रहता है। जिसका प्लांट लगाने से पहले वैज्ञानिक पता लगा लेते हैं। 

इस तकनीक में एक रीसाइक्लिंग चैन बनाई जाती है जिसमे ज़मीन के अन्दर हॉल बनाते हैं और उसमे पाइप्स डाल देते हैं। इसके बाद पानी-मिश्रित लावा बाहर निकाला जाता है और इसके साथ जो वाष्प बाहर निकलती है, उसका दबाव टरबाइन को घुमाने का कार्य करता है। इसे तकनीक को रीसाइक्लिंग प्रोसेस इसलिए कहा जाता है क्योंकि जो भी तत्व अन्दर से टरबाइन घुमाने के लिए निकाला जाता है उसे वापिस दूसरी ओर से प्रथ्वी के अन्दर डाल दिया जाता है।

यह बिजली बनाने का एक गज़ब की तकनीक है लेकिन इसे प्रकृति के अनुसार कुछ ही जगहों पर सम्पूर्ण किया जा सकता है।

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डीजल इंजन पॉवर प्लांट (Diesel engine power plant)

डीजल इंजन पॉवर से तो आप भली-भांति परिचित होंगे क्योंकि हम डीजल इंजन के द्वारा कभी न कभी अपने घरों में बिजली का उत्पादन करते ही हैं।

डीजल इंजन पॉवर प्लांट का इस्तेमाल कम मात्रा की विधुत (एलेक्टिसिटी) उत्पादन करने के लिए किया जाता है। इसके अलावा डीजल पॉवर प्लांटों का इस्तेमाल ऐसी जगहों पर किया जाता है जहाँ पानी, कोयले और अन्य जरूरी पधार्थों की मात्रा पर्याप्त नहीं होती है जैसे कि रेगिस्तान, युद्ध स्थलों, सिनेमा, बड़े-बड़े कारखाने एवं विवाह उत्सव आदि होते हैं। 

इन सभी चीजों के अलावा डीजल से उत्पादित ऊर्जा काफी महंगी पड़ती है। इसी कारण इसका इस्तेमाल वैकल्पिक रूप में किया जाता है।  

बता दें कि डीजल फ्यूल के रूप में इंजन को चलाता है जिससे जनरेटर चलता है और फिर विधुत (एलेक्टिसिटी) पैदा होती है।

वैसे तो डीजल द्वारा बिजली का उत्पादन कम ही किया जाता है, लेकिन डीजल इंजन ‘थर्मल पावर इंजन’, हाइड्रोपॉवर प्लांट एवं नुक्लिअर पॉवर प्लांट आदि के साथ इमरजेंसी में बैकअप के रूप में लगाये जाते हैं जोकि कभी-कबार ही चलते हैं।

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गैस टरबाइन पॉवर प्लांट (Gas turbine power plant)

यदि गैस टरबाइन पॉवर प्लांट की बात करें तो यह तकनीक स्टीम पॉवर प्लांटों से बिलकुल अलग होती है क्योंकि इस तकनीक में हम हाई कंप्रेस्ड टेम्परेचर पर कंप्रेस्ड एयर के द्वारा टरबाइन को घुमाकर अल्टरनेटर को चलाकर बिजली उत्पन्न करते हैं।  

इस तकनीक में फ़िल्टर के द्वारा कंप्रेसर में प्राकृतिक गैसों (वायुमंडलीय गैसों) को अन्दर डाला जाता है। इसके बाद यह हाई कंप्रेस्ड गैस सीधे कॉम्बशन चैम्बर (Combustion chamber) में चली जाती है क्योंकि कॉम्बशन चैम्बर में पहले से ही प्राकृतिक गैसें जली हुई होती हैं जोकि कंप्रेस्ड एयर के साथ घुल जाती है। इसके बाद यह गैसें हाई प्रेसर और हाई टेम्परेचर के साथ सीधे टरबाइन में चली जाती हैं।   

जब टरबाइन घूम जाता है तो बची हुई हाई कंप्रेस्ड गैस को वापिस रीजनरेटर में से गुजारकर पुनः इस्तेमाल की जाती है। इसके बाद बिजली को आवश्यकता अनुसार वितरण के लिए सब-पॉवर स्टेशन्स में भेज दिया जाता है।

दोस्तों आपने इस आर्टिकल (बिजली कैसे बनती है | बिजली बनाने के तरीके | How to make electricity in hindi) में बिजली बनने की सभी तकनीकों के प्लांटों के बारे में पढ़कर नोटिस किया होगा कि केवल सॉलर पॉवर प्लांट को छोड़कर बाकी के सभी प्लांटों में अल्टरनेटर के द्वारा बिजली बनाई जाती है जोकि अलग-अलग प्रकार की विधियों द्वारा अल्टरनेटर को घुमाकर बिजली (एलेक्टिसिटी) पैदा या उत्पन्न करता है।  

FAQs – अधिकतर पूछे जाने वाले प्रश्न

प्रश्न – बिजली कितने प्रकार से बनाई जाती है?

उत्तर – दुनियाभर में बिजली (इलेक्ट्रिसिटी) कई तकनीक द्वारा बनाई जाती है जोकि थर्मल पॉवर प्लांट, हाइड्रो पॉवर प्लांट, नुक्लेअर पॉवर प्लांट, विंड पॉवर प्लांट, बायोमास पॉवर प्लांट और सोलर एनर्जी पॉवर प्लांट आदि तकनीक द्वारा वर्तमान में बिजली बनाई जाती है।  

प्रश्न – पॉवर प्लांटों से बिजली घरों तक सुरक्षित कैसे पहुंचाई जाती है?

उत्तर – पॉवर प्लांटों से बिजली घरों तक सुरक्षित ट्रांसमिशन लाइन्स के द्वारा पहुंचाई जाती है।  

निष्कर्ष – The Conclusion

इस लेख में इतना ही जिसमे हमने बिजली कैसे बनती है | बिजली बनाने के तरीके | How to make electricity in hindi के बारे में विस्तार पूर्वक समझाया है। इसके अलावा इस लेख में बिजली बनाने के प्रकारों को विस्तार से सरलतापूर्वक समझाने का प्रयास किया है।

इस आर्टिकल को कड़ी महनत और काफ़ी रिसर्च के बाद एकत्रित जानकारी के साथ लिखा गया है। यदि आपने इस आर्टिकल को यहाँ तक पढ़ा है तो बहुत-बहुत धन्यबाद! इसके अलावा आपका इस आर्टिकल से सम्बंधित कोई भी सवाल या सुझाव हो तो हमें नीचे कमेंट करके जरूर बताएँ।

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