केदारनाथ मंदिर का महत्व | केदारनाथ मंदिर का इतिहास एवं कहानी

मानव द्वारा धरती पर हजारों वर्षों से पूजा-पाठ कर श्रद्धा का भाव एवं ईश्वर के प्रति मान्यता का चलन रहा है। धार्मिक तीर्थ-स्थलों के प्रति कोई आस्था एवं श्रद्धा का भाव रखता है तो यह अच्छा ही है क्योंकि मानव द्वारा अपने धर्म में मौजूद तीर्थ स्थलों के प्रति प्रेम एवं आस्था रखने से उसे सुख-शांति का आनंद प्रकट होता है।

जैसे की आप टाइटल को पढ़कर समझ गए होंगे कि इस आर्टिकल के माध्यम से आज आप केदारनाथ मंदिर का महत्व | केदारनाथ मंदिर का इतिहास एवं कहानी के बारे में जानेंगे।  इसके अलावा इस आर्टिकल को अंत तक पढ़कर आप केदारनाथ धाम से जुडी पौराणिक कथाएं, रोचक तथ्य एवं रहस्यों से भली-भाँती परिचित होंगे।

केदारनाथ मंदिर का महत्व – Kedarnath Temple significance in hindi

उत्तराखंड राज्य में हिन्दू श्रद्धालुओं द्वारा चार धाम की यात्रा (बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री एवं यमनोत्री) में केदारनाथ धाम का सबसे अधिक महत्व माना जाता है। इसी कारण केदारनाथ धाम में हर वर्ष लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं क्योंकि इस धाम के प्रति श्रद्धालुओं का अटूट प्रेम एवं श्रद्धा है।   

हिन्दू धर्म मे मौजूद पुराणों के अनुसार भगवान शिव ने प्रकृति का कल्याण साधने हेतु भारतवर्ष में 12 स्थानों पर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए और इन 12 स्थानों पर शिव-लिंगों को ज्योतिर्लिंग के रूप में श्रद्धाभाव से अटूट प्रेम के साथ पूजा जाता है। जिनमे एक ज्योतिर्लिंग केदारनाथ धाम में भी है।

अनैकों श्रद्धालुओं का मत है कि जो श्रद्धालु केदारनाथ जी (Kedarnath Temple) के दर्शन किये बिना बद्रीनाथ जी की यात्रा करता है तो उनकी यात्रा पूर्ण नहीं मानी जाती और उन्हें पापों से मुक्ति नहीं मिलती है।   

केदारनाथ मंदिर उत्तराखण्ड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में हिमालय पर्वत की गोद में बना हुआ विशाल मंदिर है जोकि शर्दियों में अधिक बर्फ़बारी के कारण (रास्ते बंद हो जाने की कारण) श्रद्धालुओं के लिए एक साल में केवल छ: माह के लिए ही खोला जाता है।

केदारनाथ मंदिर (Kedarnath Mandir) पहाड़ों द्वारा तीन तरफ से घिरा हुआ है। जिमसे एक तरफ केदारनाथ पर्वत, दूसरी तरफ खर्चकुण्ड पर्वत एवं तीसरी तरफ भरतकुण्ड पर्वत स्थित हैं। इनके अलावा यहाँ पांच नदियों (मन्दाकिनी, मधुगंगा, छीरगंगा, सरस्वती और स्वर्णगौरी) का संगम भी माना जाता है। इनमे कुछ नदियों को काल्पनिक माना जाता है और वर्तमान समयानुसार इस इलाके में मन्दाकिनी नदी साफ़ तौर पर दिखाई पड़ती है। 

केदारनाथ के पुजारी मैसूर के जंगम ब्रह्माण्ड होते हैं। जिनके द्वारा सुबह 6 बजे श्रद्धालुओं के लिए मंदिर के कपाट खोल दिए जाते हैं। इसके बाद दोपहर के 3 बजे से शाम 5 बजे तक विशेष पूजन करने के बाद मंदिर को कुछ समय के लिए बंद किया जाता है।  इसके बाद दुबारा शाम 5 बजे श्रद्धालुओं के लिए मंदिर खोला जाता है। जिसके बाद शाम 7:30 बजे से रात 8:30 बजे तक आरती कर एवं शिव की प्रतिमा का विधवत श्रंगार कर मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं।   

केदारनाथ मंदिर का इतिहास एवं कहानी – Kedarnath Temple history and story in hindi

यदि हम केदारनाथ मंदिर के निर्माण हेतु इतिहास की ओर देखते हैं तो इसमें कई पौराणिक कहानियाँ एवं कथाएँ देखने को मिलती हैं।

इस मंदिर को एक हजार वर्ष से भी अधिक पुराना माना जाता है और कहा जाता है कि इसका निर्माण पांडवों के वंशज महाराजा जन्मेजय द्वारा करवाया गया। लेकिन ग्वालियर से मिले सबूतों के आधार पर मालवा के राजभोज ने 10वीं शताब्दी में इस मंदिर (Kedarnath Temple) का निर्माण करवाया था। 

इनके अलावा एक प्रचलित मान्यता के आधार पर इस मंदिर का निर्माण आदि गुरु शंकराचार्य ने 8वीं शताब्दी में करवाया था। जिनकी 32 वर्ष की आयु में केदारनाथ के समीप म्रत्यु हुई। इसी के साथ शंकराचार्य जी की केदारनाथ मंदिर के पिछले भाग में समाधि भी है। 

उपर्युक्त तथ्यों से हटकर केदारनाथ मंदिर को लेकर दो पौराणिक कथाएं (कहानियाँ) अत्यंत प्रशिद्ध हैं –

पहली कहानी के अनुसार –

केदारनाथ पर्वत के शिखर पर भगवान विष्णु के अवतार महातपस्वी नर और नारायण ऋषि घोर तपस्या करते थे। उनके इस परिश्रम को से खुश होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और उनकी प्रार्थना के आधार पर ज्योतिर्लिंग के रूप में इस पर्वत पर सदा वास करने का बचन दिया था। 

दूसरी कहानी के अनुसार –

महाभारत के युद्ध में पांडवों के विजयी होने के पश्चात उनपर भ्रातृ-हत्या यानिकि अपने ही परिवार के लोगों की हत्या का पाप लग गया था। जिसके बाद पांडव इस पाप से पूर्ण रूप से मुक्त होना चाहते थे। जिसके लिए भगवान शिव का आशीर्वाद पाना चाहते थे लेकिन शिव इस भ्रातृ-हत्या से नाराज थे और पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे। 

भगवान शिव के दर्शन के लिए पांडव काशी गए लेकिन उन्हें शिव न मिले लेकिन पांडव उन्हें ढूँढ़ते रहे। जिसके बाद पांडवों को पता चला कि भगवान शिव हिमालय में जा बसे हैं और पांडव भी हिमालय जा पहुँचे।

भगवान शिव ने यह देखा तो उन्होंने एक बैल का रूप धारण कर पाशुओं में सम्मिलित हो गए ताकि पांडवों को पता न चले। लेकिन पांडवों को भ्रम हो गया और भीम ने विशाल रूप धारण कर दोनों ओर पहाड़ियों में पैर फैला दिए। यह देख सभी पशु भीम के पैरों के नीचे से निकल गए लेकिन भगवान शिव बैल के रूप धारण किये हुए वहां से निकालने को तैयार नहीं हुए।

जिसके बाद भीम ने अपने बल से बैल को पकड़ा लेकिन बैल धरती में समाने लगा और तभी भीम ने बैल के पीठ के भाग को पकड़ लिया।

भगवान शिव पांडवों के द्रण संकल्प को देख बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने उसी क्षण पांडवों को दर्शन दे पाप से मुक्त कर दिया। इसी के बाद भगवान शिव बैल की पीठ की आकृति के पिंड के रूप में केदारनाथ धाम में आज भी पूजे जाते हैं 

अब यदि केदारनाथ मंदिर की बनावट की बात करें तो यह 6 फुट ऊँचे चौकोर चबूतरे पर 85 फुट ऊँचा और 187 फुट चौड़ा बना हुआ है इसके अलावा इस मंदिर की दीवारें 12 फुट मोटी है जोकि बेहद मजबूत पत्थरों से तरासी गई हैं। 

केदारनाथ का यह विश्व प्रशिद्ध मंदिर 3,462 मी० की ऊँचाई पर मौजूद है जोकि सोचने वाली बात है कि लगभग एक हजार वर्ष पहले इतनी ऊँचाई पर इतने भारी पत्थरों को तरासकर इस मंदिर को कैसे बनाया होगा?

जानकार बताते हैं कि इन पत्थरों को आपस में जोड़ने के लिए इंटर-लॉकिंग तकनीक का सहारा लिया गया होगा जोकि यही मजबूती आज भी आपदाओं के मार झेल इस मंदिर सुरक्षित खड़ा रखने में सहायता करती है।

केदारनाथ मंदिर का रहस्य – Kedarnath Temple mystery in hindi

यदि केदारनाथ धाम में मौजूद इस मंदिर के रहस्यों की बात करें तो इसकी अपार क्रपा एवं शक्ति श्रद्धालुओं को अपनी ओर खुद व खुद खींच लेती है।

वैज्ञानिकों द्वारा इस मंदिर के एक अहम रहस्य से पर्दा उठाया गया कि यह मंदिर लगभग 400 वर्षों तक बर्फ के नीचे दबा रहा था। वह बताते हैं कि एक छोटे हिम-युग के दौरान 13वीं से 17वीं सताब्दी के दौरान यह बर्फ के नीचे सुरक्षित बना रहा।

बर्फ के नीचे दबने के सबूत इस बात से भी मिलते हैं कि मंदिर की बाहरी ओर बर्फ की चट्टानों के कारण निशान देखने को मिलते हैं और वहीं मंदिर की अन्दर की ओर एक दम सही अवस्था में पॉलिशिंग किया हुआ दिखता है।

आप जून 2013 के समय के बारे में तो जानते ही होंगे जब उत्तराखण्ड और हिमाचल प्रदेश में अचानक बाढ़ आ गई थी। जिसके साथ भूस्खलन भी होने लगा था और सबसे अधिक प्रभावित केदारनाथ धाम हुआ था। 

यह आपदा इतनी भया-भय थी कि इसके आस-पास बनी धर्मंशालाएं एवं होटल पूरी तरह से तबाह कर अपने साथ बहा ले गई थी। लेकिन इस एतिहासिक केदारनाथ मंदिर का सदियों पुराना मुख्य गुम्बद पूरी तरह से सुरक्षित रहा। 

इतनी भयानक एवं सबकुछ तहस-नहस करने वाली प्रलय के आने के बाद इस मंदिर का अपनी भव्यता के साथ ज्यों की त्यों अपने स्थान पर खड़े रहना किसी रहस्य एवं चमत्कार से कम नहीं है।

FAQs – बार बार पूछे जाने वाले प्रश्न

Q. केदारनाथ मंदिर कहाँ स्थित है?

Ans. केदारनाथ भारत के उत्तराखण्ड के रुद्रप्रयाग जिले में हिमालय पर्वत पर स्थित है।

Q. केदारनाथ में कौन से भगवान की पूजा की जाती है?

Ans. केदारनाथ में भगवान शिव की पूजा होती है।

Q. केदारनाथ मंदिर में किसकी मूर्ती है?

Ans. केदारनाथ में बैल की पीठ की आकृति के पत्थर के पिंड को भगवान शिव की ज्योर्तिलिंग के रूप में पूजा जाता है।

Q. केदारनाथ कब खुलता है और कब बंद होता है?

Ans. केदारनाथ के कपाट मेष संक्राति के लगभग 15 दिन पहले खुलते हैं और दीपावली के महापर्व के बाद (भैया दूज के बाद) मंदिर को बंद कर दिया जाता है।

Q. केदारनाथ में कौन से महीने में जाना चाहिए?

Ans. केदारनाथ मंदिर अप्रैल से नवंबर के महीनों के बीच ही जाना चाहिए क्योंकि बाकी के महीनों में बर्फ़बारी के कारण मंदिर बंद रहता है।

Q. केदारनाथ किस राज्य में है?

Ans. केदारनाथ धाम उत्तराखण्ड राज्य में स्थित है।  

Q. हरिद्वार से केदारनाथ कितने किलोमीटर है?

Ans. हरिद्वार से केदारनाथ लगभग 123 किमी० की दूरी पर स्थित है।  

निष्कर्ष – The Conclusion

इस आर्टिकल को यहाँ तक पढ़कर आपने केदारनाथ धाम (Kedarnath Dham) के बारे में जाना। जिसमे हमने केदारनाथ मंदिर का महत्व | केदारनाथ मंदिर का इतिहास एवं कहानी के अलावा केदारनाथ धाम से जुडी पौराणिक कथाएं, रोचक बातें एवं रहस्यों से जुडी अहम जानकारी को कम शब्दों के साथ आसान रूप में समझाने का प्रयास किया है। 

यदि आपका इस पूरे आर्टिकल में दी गई कोई भी छोटी-बड़ी जानकारी को लेकर सवाल या सुझाव हो तो हमें नीचे कमेंट करके अवश्य बताएं। हम आपकी प्रतिक्रिया का सम्मान करते हैं।

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