कुंभ मेला का इतिहास | Kumbh mela in hindi

दोस्तों जैसे कि आप जानते हैं कि भारत अनिश्चिताओं भरा देश है; जिसमे प्राचीन- सभ्यता और अनैक धर्म, जाति, संस्कृति, आस्था, पवित्र-स्थल और मान्यताएं पायी जाती हैं। यदि आप भारत में रहते हैं तो आपने कुम्भ मेले (Kumbh mela) के आयोजन के बारे में अख़बार, टेलीविज़न न्यूज़ चैनल, इन्टरनेट आदि के माध्यम से बहुत बार सुना होगा। लेकिन आपको पता है कि कुंभ मेला का इतिहास | Kumbh mela in hindi क्या है? और कुम्भ का मेला को भारत किस-किस स्थान पर कितनी बार और क्यों मनाया जाता है?

इस लेख में आप कुम्भ मेले के इतिहास (Kumbh mela ka itihas) के अलावा कुम्भ के बारे में बार-बार पूछे जाने वाले तथ्यों के बारे में भी जानेंगे। तो हम उम्मीद करते हैं कि आप इस आर्टिकल को आखिर तक पढकर कुंभ मेला का इतिहास | Kumbh mela in hindi और दुनिया के सबसे बड़े कुम्भ मेले (Kumbh Mela) के बारे में अपनी जानकारी को जरूर मजबूत करेंगे।   

कुंभ मेला का इतिहास – Kumbh mela history in hindi

यदि कुंभ मेले के इतिहास (Kumbh mela ka itihas) के बारे में बात करें तो कुंभ का इतिहास काफ़ी प्राचीन है जोकि भारत की जटिल संस्कृति, आस्था, धार्मिक मान्यतायों का प्रतीक है। कुंभ मेला (Kumbh mela) हिन्दू धर्म का एक धार्मिक-बंधन है। दुनिया के सबसे बड़े इस मेले में देश-विदेश से करोड़ों श्रद्धालु आस्था की डुबकी (स्नान) लगाने आते हैं।  

चलिए कुंभ का इतिहास (Kumbh mela history) भी जान लेते हैं तो कुंभ मेले की शुरुआत कैसे हुई? इसकी कोई ठोस प्रमाणिक जानकारी नहीं है। लेकिन इतिहास के पन्नों में इसका प्राचीनतम वर्णन चीनी यात्री ह्वेनसांग के कार्यों में उल्लेखित किया जाता है जोकि हर्षवर्धन के शासनकाल (629–645) के दौरान भारत आये थे।

इसके अलावा प्राचीन पुराणों के अनुसार शंकराचार्य ने कुंभ का आयोजन किया था। तो कुछ पौराणिक कथाओं में यह कहा गया है कि कुंभ मेले (Kumbh mela) के आयोजन की शुरुआत ‘समुंद्र मंथन’ के कारण हुई थी।

तो चलिए आगे पढते हुए देखते हैं कि कैसे ‘समुद्र मंथन’ कुंभ मेला लगने का कारण बना? कुंभ मेला का इतिहास | Kumbh mela in hindi को और अच्छे से समझने के लिए नीचे लिखी हुई कुंभ के बारे में पौराणिक कहानी को पढते हैं।   

कुंभ मेला की कहानी – Kumbh mela story in hindi  

पौराणिक कथाओं में कहा जाता है कि जब एक दिन सुबह ‘महर्षि दुर्वाशन ऋषि‘ कहीं जा रहे थे। तो उनको रास्ते में ‘भगवान इंद्र देवता‘ मिले। इसके बाद इंद्र ने ‘महर्षि दुर्वाशन‘ का बहुत अच्छे से अभिवादन किया; जिससे खुश होकर ‘महर्षि दुर्वाशन‘ ने अपने गले से माला उतार ‘भगवन इंद्र‘ को दे दी। इसके बाद ‘भगवन इंद्र‘ ने यह माला खुद न पहनते हुए अपने वाहन हाथी के गले में डाल दी लेकिन हाथी ने यह माला गले से उतारकर अपने पैरों से कुचल डाली।  

यह देख ‘महर्षि दुर्वाशन ऋषि‘ अपमानित महसूस करने लगे और उन्होंने ‘भगवान इंद्र‘ के अलावा और भी देवताओं को श्राप दे दिया। जिसके पश्चात सभी देवताओं की शक्तियां कमजोर पड़ने लग गईं। इसका फायदा उठा राक्षसों (असुरों) ने देवताओं पर आक्रमण कर दिया। 

इसके बाद भगवान इंद्र और अन्य देवता भ्रमित होकर ‘भगवन ब्रह्मा‘ के पास पहुंचे और फिर सभी देवता मिलकर ‘भगवान विष्णु‘ के पास गए। जिसके बाद ‘भगवान विष्णु‘ चाल चलते हुए राक्षसों (असुरों) से समझोता करते हैं कि हम सभी ‘क्षीर-सागर‘ में ‘समुन्द्र मंथन‘ करेंगे। जिसके बाद ‘समुन्द्र मंथन‘ से जो भी चीजें बाहर निकलेंगी; उन सभी को आपस में आधा-आधा बाँट लेंगे। जिसके बाद हम सभी आपस में चल रहे युद्ध को भी खतम कर लेंगे।   

समुन्द्र मंथन हुआ और उसमे बहुत सारी चीजे बाहर निकली। और फिर समुन्द्र मंथन से अमृत का कलश (कुंभ) निकला। यह अमृत असुरों के हाथ न पड़ जाए इसी कारण भगवान इंद्र के इशारे पर उनके बेटे जयन्त देव अमृत के कलश को लेकर भाग निकले। लेकिन असुर यह देख जयंत के पीछे पड़ गए। इसके बाद देवताओं का अमृत बचाने के लिए असुरों के साथ युद्ध हो गया और इसी युद्ध में कलश (कुंभ) से प्रथ्वी के चार स्थान प्रयागराज (इलाहाबाद), हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में अमृत छलक कर गिर गया था।

अमृत गिरने के बाद इन चारों स्थानों में पवित्र नदियों के रूप में उत्पत्ति हो गई और आज इन्हीं चार स्थानों की नदी किनारे कुंभ मेले (Kumbh mela) का आयोजन किया जाता है।  

क्योंकि देवताओं और असुरों के बीच अमृत पाने के लिए 12 दिन युद्ध हुआ था। कहा जाता है कि देवलोक का 1 दिन प्रथ्वी के 1 वर्ष के बराबर होता है। इस युद्ध को ख़तम करने के लिए भगवान विष्णु ने एक सुन्दर कन्या (मोहिनी) का रूप धारण कर अमृत अपने हाथों में लेकर इस प्रकार देवताओं और असुरों के बीच अमृत की बंटवारा किया था। जिससे सारा अमृत देवताओं को ही पिला दिया था और जब असुरों की बारी आई थी तब तक सारा अमृत समाप्त हो गया था।   

कुंभ मेला कहाँ-कहाँ लगता है? Places for kumbh mela

जैसे कि उपर्युक्त लेख में पढकर आपने जान लिया है कि कुंभ (Kumbh) का मतलब कलश या घड़ा होता है। और मेला जोकि एक संस्कृत का शब्द से लिया है जिसका मतलब ‘सभा’ या ‘मिलना’ होता है। 

यदि बात करें कि कुंभ मेला (Kumbh mela) भारत में किस स्थान पर लगता है तो यह मेला पौराणिक मान्यताओं के आधार पर 12 वर्ष में 4 बार प्रत्येक 3-3 वर्ष के अंतराल में भारत के चार धार्मिक-स्थानों के नदियों के तटों पर आयोजित होता है। मतलब यह मेला 12 साल बाद पुनः वापिस अपने पुराने स्थान पहुँचता है।  

जिसमे यह कुंभ का मेला प्रयागराज (इलाहबाद) में संगम (गंगा, यमुना और सरस्वती नदी के किनारे), हरिद्वार में गंगा नदी किनारे, उज्जेन में शिप्रा नदी किनारे और नासिक में गोदावरी नदी किनारे आयोजित किया जाता है।  

कुंभ का यह मेला लगभग 48 दिनों तक चलता है। इस महत्वकांक्षी मेला में दुनिया भर के हिन्दू श्रद्धालु स्नान करने आते हैं।   

इसे भी जाने: दुनिया के सात अजूबे क्या है?

कुंभ मेले की तिथि कैसे निर्धारित की जाती है? | Kumbh mela date

कुंभ का मेला (Kumbh mela) कब और कहाँ आयोजित किया जाएगा? तो यह राशियों के आधार पर निर्भर करता है। जिसमें सूर्य और ब्रहस्पति का बहुत ही अहम योगदान होता है। ऐसा माना जाता है कि जब सूर्य और ब्रहस्पति एक राशि से निकलकर दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं तब कुंभ का मेला आयोजित किया जाता है। मतलब राशियों के आधार पर ही कुंभ की तिथि और स्थान निर्धारित किया जाता है।

  • जब ब्रहस्पति (गुरु) – ‘मेष राशि’ में प्रवेश करता है और सूर्य – ‘मकर राशि’ में प्रवेश करता है तब कुंभ का आयोजन प्रयागराज (इलाहाबाद) में किया जाता है।  
  • जब सूर्य – ‘मेष राशि’ में प्रवेश करता है और ब्रहस्पति (गुरु) – ‘कुंभ राशि’ में प्रवेश करता है तब कुंभ का आयोजन हरिद्वार में किया जाता है।
  • जब सूर्य और ब्रहस्पति दोनों ‘सिंह राशि’ में प्रवेश करते है तब कुंभ का आयोजन नासिक में किया जाता है।
  • जब ब्रहस्पति – ‘सिंह राशि’ में प्रवेश करता है और सूर्य – ‘मेष राशि’ में प्रवेश करता है तब कुंभ का आयोजन उज्जैन में किया जाता है।

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि जब सूर्य – ‘सिंह राशि’ में प्रवेश करता है तो इसी कारण कुंभ का आयोजन उज्जैन में किया जाता है। जिसे सिंहनस्थ कुंभ भी कहा जाता है।

कुंभ कितने प्रकार के होते है? | कुंभ मेलों के प्रकार

महा कुंभ मेला

महा कुंभ मेला केवल प्रयागराज (इलाहाबाद) में आयोजित किया जाता है जोकि प्रयेक 144 वर्षों के बाद या 12 पूर्ण कुंभ मेलों के बाद आता है।

पूर्ण कुंभ मेला

यदि पूर्ण कुंभ मेला की बात करें तो यह 12 साल में एक बार आयोजित किया जाता है। जैसे कि भारत में मुख्य रूप से चार पवित्र कुंभ स्थान (प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक) हैं। इन चारों में से हर एक स्थान पर बारी-बारी से 12 साल के बाद पवित्रता और विविधताओं से भरे इस कुंभ के मेला का आयोजन किया जाता है। 

अर्द्ध कुंभ मेला

जैसे कि आप नाम से ही जान सकते हैं कि अर्द्ध मतलब आधा कुंभ मेला जोकि हर 6 वर्ष में भारत में केवल 2 स्थानों हरिद्वार और प्रयागराज (इलाहाबाद) में लगाया जाता है। मतलब यह 12 वर्ष में 2 बार आयोजित किया जाता है।   

बता दें कि प्रयागराज (इलाहाबाद) में 2013 में अर्द्ध कुंभ लगा चुका है और यह दोबारा से 6 साल बाद 2019 में आयोजित किया किया गया था। इसके बाद अब अगला अर्द्ध कुंभ का मेला 2025 हरिद्वार में लगेगा। इसके 6 साल बाद फिर से लौटकर यह अर्द्ध कुंभ 2031 में प्रयागराज में आयोजित होगा।  

माघ कुंभ मेला

माघ कुंभ मेला की बात करें तो इसे सबसे छोटा या मिनी कुंभ मेला भी कहा जाता है। माघ कुंभ मेला प्रत्येक वर्ष केवल प्रयागराज में आयोजित किया जाता है जोकि हिन्दू कैलेंडर के अनुसार माघ-महीने में आयोजित किया जाता है।   

कुंभ मेले का क्या महत्व है? | Kumbh mela ka mahatva | Why kumbh mela is celebrated in hindi

कुंभ के मेले के महत्व की बात करें तो दुनिया भर में हिन्दू श्रद्धालुओं के लिए इसका बहुत अधिक महत्व है। कहते हैं कि हर हिन्दू को एक बार कुंभ स्नान जरूर करना चाहिए क्योंकि ऐसी मान्यता है कि कुंभ स्नान करने से शरीर और आत्मा दोनों का शुद्धिकरण हो जाता है।

इसी कारण कुंभ के मेले के आयोजन में लगभग 2 करोड़ से भी ज्यादा भारतीय और विदेशी पर्यटक आ कर हिस्सा लेते हैं। कुंभ मेले में आये श्रद्धालु यह भी मानते हैं कि कुंभ का मेला जन-मानस की परम चेतना का प्रतीक है। इसके अलावा हिन्दू श्रद्धालु यह भी मानते हैं कि कुंभ भारतीय प्राचीन सभ्यता का खजाना है।  

कुम्भ मेला के बारे में कुछ रोचक तथ्य – Interesting facts about kumbh mela

  • कुंभ मेला दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक मेला माना जाता है। जिसे प्राचीन संस्कृति का प्रतीक भी माना गया है।
  • कुंभ मेला को उनेस्को (Unesco) के द्वारा भारत की महान सांस्कृतिक विरासत के रूप में मान्यता प्रदान की है।  
  • कुंभ का मेला 12 साल नहीं वल्कि हर तीसरे साल लगता है।
  •  ब्रहस्पति एक राशि में लगभग 1 साल रहता है। मतलब ब्रहस्पति को 12 राशि में भ्रमण करते हुए 12 साल लगते हैं। इसलिए फिर 12 साल बाद उसी स्थान पर कुंभ का आयोजन किया जाता है। जिसमे प्रयागराज (इलाहाबाद) का सबसे विशेष महत्व रखता है।
  • कुंभ के आयोजन में सूर्य, चन्द्र, ब्रहस्पति और शनि गृह की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। मतबल इन्ही ग्रहों की विशेष स्थिति में आने के बाद कुंभ का आयोजन किया जाता है।

निष्कर्ष – Conclusion

इस लेख में इतना ही जिसमे हमने कुंभ मेला का इतिहास | Kumbh mela in hindi के अलावा कुंभ मेला की कहानी (Kumbh mela story in hindi), कुंभ मेला कहाँ-कहाँ लगता है? (Places for kumbh mela), कुंभ मेले की तिथि कैसे निर्धारित की जाती है?, कुंभ मेले का क्या महत्व है? (Kumbh mela ka mahatva) और कुम्भ मेला के बारे में कुछ रोचक तथ्य को भी विस्तार से बताया है। इस लेख से सम्बंधित आपका कोई सवाल या सुझाव हो तो हमें नीचे कमेंट करके जरूर बताएँ।   

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