जैन धर्म क्या है | जैन धर्म का इतिहास

नमस्कार दोस्तों, हमारा भारत जोकि शुरुआत से ही ऋषियों-मुनियों एवं बोद्धों आदि की पावन धरती रही है जोकि कई प्राचीन धर्मों (हिन्दू, जैन, बौद्ध) की उपज भी है। भारतीय-भूमि की इन्हीं विशेषताओं के चलते आज हम इस आर्टिकल के माध्यम से जैन धर्म क्या है | जैन धर्म का इतिहास के बारे में चर्चा करने जा रहे हैं।

हम उम्मीद करते हैं कि आप भारत के इस प्राचीनतम जैन धर्म (Jainism in hindi) की जानकारी को इस आर्टिकल को अंत तक पढ़कर अपनी जानकारी को जरूर बढ़ाएंगे।

जैन धर्म क्या है – What is Jain religion in hindi

जैन धर्म (Jainism) भारत का प्राचीनतम एवं श्रमणों का धर्म है जोकि मुख्य रूप से अहिंसा, अनुशासन, आध्यात्मिक शुद्धता एवं आत्मज्ञान का मार्ग सिखाता है। इस धर्म में कुल 24 तीर्थंकर (प्रवर्तक) हुए हैं; जिनमे प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव (आदिनाथ) तो वहीं आखिरी एवं 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी थे।

जैन धर्म के 24 तीर्थंकर – All masters of Jainism in hindi

प्रथम तीर्थंकरऋषभदेव (आदिनाथ )
द्वतीय तीर्थंकरअजितनाथ
तृतीय तीर्थंकरसंभवनाथ
चतुर्थ तीर्थंकरअभिनंदन जी
5वें तीर्थंकरसुमतिनाथ जी
6वें तीर्थंकरपद्मप्रभु जी
7वें तीर्थंकरसुपार्श्वनाथ जी
8वें तीर्थंकरचंद्राप्रभु जी
9वें तीर्थंकरसुविधिनाथ
10वें तीर्थंकरशीतलनाथ जी
11वें तीर्थंकरश्रेयांसनाथ
12वें तीर्थंकरवासुपूज्य जी
13वें तीर्थंकरविमलनाथ जी
14वें तीर्थंकरअनंतनाथ जी
15वें तीर्थंकरधर्मनाथ जी
16वें तीर्थंकरशांतिनाथ
17वें तीर्थंकरकंथुनाथ
18वें तीर्थंकरअरनाथ जी
19वें तीर्थंकरमल्लिनाथ जी
20वें तीर्थंकरमुनिसुव्रत जी
21वें तीर्थंकरनमिनाथ जी
22वें तीर्थंकरअरिष्टनेमि जी
23वें तीर्थंकरपार्श्वनाथ
24वें तीर्थंकरमहावीर स्वामी

जैन धर्म का इतिहास – History of Jain religion in hindi

जैन धर्म का इतिहास काफी प्राचीनतम है जोकि प्राचीन भारत में हिन्दू धर्म में रुढ़िवादी ब्राह्मण-वाद की अधिकता एवं जटिल कर्म-कांडों को देखते हुए इसका निर्माण हुआ था। जिसका उल्लेख मुख्य रूप से पौराणिक साहित्यों में आसानी से देखा जा सकता है; जिसमे कुल 24 तीर्थंकर (प्रवर्तक) हुए हैं। जैन धर्म (Jainism) के उपदेशों के अनुसार इस अवसर पीढी-काल में मुख्य रूप से कुल 24 तीर्थंकर हुए, इससे पिछले काल में 24 तीर्थंकर हुए और आने वाले अगले काल में भी 24 तीर्थंकर होंगे। लेकिन इस अवसर पीढ़ी-काल में इस धर्म का अधिकता में प्रचार-प्रसार 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी द्वारा हुआ है। इसी कारण हम जैन धर्म के इतिहास में मुख्य रूप से महावीर स्वामी और उनकी शिक्षाओं के बारे में अधिकता में जानेंगे।

महावीर स्वामी का जन्म 540 ईसा पूर्व में कुण्डग्राम (वैशाली), बिहार के एक राज-घराने में हुआ था। इनके पिता का नाम सिद्धार्थ और माता का नाम त्रिशला था और वहीं पत्नी का नाम यशोदा था। इनकी संतान के रूप में केवल एक पुत्री थी; जिसका नाम प्रियदर्शना था और दामाद का नाम जमाली था।

महावीर स्वामी ने केवल 30 वर्ष की आयु में गृह-त्याग कर दिया और ज्ञान की प्राप्ति में निकल गए और वहीं बाहर रहकर 12 वर्षों तक ज्ञान अर्जित किया लेकिन स्वामी को जांबिक ग्राम में ऋजुपालिका नदी के तट पर मौजूद शाल-वृक्ष के नीचे बैठकर कठोर तपस्या के बाद ज्ञान की प्राप्ति हुई। जिसके बाद इन्हें जीन कहा गया ‘जिन’ मतलब ‘सुख और दुःख दोनों पर विजय प्राप्त कर लेना’ और यहीं से इन्हें महावीर कहा जाने लगा।

इसके बाद महावीर स्वामी ने अपने अनुयाइयों के बीच प्राकृत भाषा में उपदेश (ज्ञान) देना शुरू किया। जिसमे इन्होने अपना पहला उपदेश राजगीर में दिया; जिसमे इनके मूलतः सिद्धांत – सम्यक ज्ञान, सम्यक विश्वास और सम्यक आचरण थे। सम्यक मतलब पूर्ण रूप से शुद्ध यानिकि इन्होने शुद्ध ज्ञान की ओर अपने अनुयाइयों को प्रेरित किया था।

महावीर स्वामी के पावापुरी में अंतिम उपदेश एवं 468 ईसा पूर्व में म्रत्यु के बाद इनके सभी उपदेशों को 14 पूर्वा-नामक किताब रख दिया गया जोकि जैन धर्म की सबसे प्रमुख किताब है।

जैन धर्म का विभाजन – Division of Jainism in hindi

जैन धर्म के विभाजन में महावीर स्वामी की म्रत्यु के बाद स्वामी के दो सबसे प्रमुख एवं प्रिय शिष्यों की सबसे अहम भूमिका मानी जाती है जोकि आचार्य भद्रबाहु और आचार्य स्थूलभद्र थे।

महावीर स्वामी की म्रत्यु के कुछ वर्षों बाद प्राचीन भारत के मगध (वर्तमान बिहार का हिस्सा) में भीषण अकाल पड़ गया। जिसके बाद आचार्य भद्रबाहु के नेतृत्व में जैन धर्म के अनुयाइयों का एक बहुत बड़ा समूह दक्षिण भारत में चला गया। इसके अलावा बाकी के जैन धर्म के अनुयाइयों का बहुत बड़ा हिस्सा आचार्य स्थूलभद्र के नेतृत्व में मगध में ही रह गया

जिसके बाद इन जैन अनुयाइयों के अलग-अलग रहने के कारण इनकी विचारधाराओं में भी भिन्नता आ गई जोकि 12 वर्षों बाद अकाल समाप्त होने के बाद वापिस मगध गए तो इन दोनों में विवाद हुआ क्योंकि दक्षिण-भारत में रह रहे जैन अनुयाइयों ने अपने सभी सिद्धांतों का पालन कर निर्वस्त्र (बिना कपडे पहने) रह रहे थे लेकिन मगध में मौजूद जैन अनुयाइयी सफ़ेद वस्त्र धारण करने लगे थे। इसके अलावा मगध-निवासी जैन अनुयाइयों की औरतों के प्रति विचारधारा बदल गई और वहीं दक्षिण भारत से वापिस लौटे जैन अनुयाइयी औरतों को बराबरी का दर्जा नहीं देते थे इन्ही कुछ कारणों के चलते यह दो भागों में विभाजित होकर अलग हो गए।

इस प्रथम विभाजन के बाद दक्षिण भारत से वापिस लौटे जैन निर्वस्त्र (बिना कोई कपडा पहने) रहकर कठोरता से धर्म का पालन करने लगे जोकि दिगम्बर कहे जाने लगे और वहीं मगध में रह रहे जैन जो वस्त्र (केवल सफ़ेद रंग के सादा कपडे) पहनते थे उन्हें श्वेताम्बर कहा जाने लगा और इसी प्रकार जैन धर्म दो भागों में बंट गया था। इस विभाजन के अलावा जैन धर्म के अधिकतर उपदेश प्राकृत भाषा (बहुत कम इस्तेमाल की जाने वाली भाषा) में होने के कारण इसका प्रचार-प्रसार अधिकता में नहीं हुआ और सबसे प्रमुख कठोर नियमों के कारण इस धर्म से अधिक युवा नहीं जुड़े थे।

इन सबके अलावा इस धर्म में अधिक रूप से बिखराव होने लगा मतलब दिगम्बर जैनियों ने कहा कि महिलाओं को मोक्ष मिल ही नहीं सकता है और इन्होने 19वीं महिला तीर्थंकर मल्लिनाथ जी के अस्तिव को मानने से मना कर दिया और कहा कि 19वीं तीर्थंकर महिला नहीं वल्कि एक पुरुष तीर्थंकर थे। लेकिन श्वेताम्बर जैनियों ने इसका समर्थन किया और इन्ही कुछ कारणों के चलते आज हमें जैन धर्म सबसे छोटा धर्म देखने को मिलता है। लेकिन जैन धर्म के लिए वर्तमान में अच्छी बात यह है कि यह लोग आज दुनियाभर में सबसे ज्यादा पढ़ा-लिखा धर्म एवं अमीरों में गिना जाता है।  

जैन धर्म के सिद्धांत – Principals of Jainism in hindi

  • जैन धर्म प्रारम्भ से ही हिंसा के खिलाफ रहा है मतलब समाज में एक सुधारक की भूमिका निभाने हेतु किसी भी प्रकार की छुआ-छूत एवं जाति-व्यवस्था में विश्वास नहीं करता है।
  • जैन धर्म में आत्मा के अस्तिव को शुद्धिकरण हेतु मानते हैं लेकिन किसी भी प्रकार के कर्म-काण्ड (म्रयु के बाद किया जाने वाले कर्म-काण्ड) का पूर्ण रूप से विरोध करते हैं।
  • इस धर्म में आत्मा को आराम न (गर्मी और ठंड दोनों बर्दास्त करने के लिए) देने कारण के निरवस्त्र रहते हैं क्योंकि इनके तीर्थंकर मानते थे कि आत्मा को अपने इस शरीर में दुखी रखें जिससे कि किसी अन्य शरीर में पुनर्जन्म न ले सके। मतलब जैन धर्म में आत्मा के कारण पुनर्जन्म को माना जाता है।
  • जैन धर्म जीव-हत्या पूरी तरह से निषेध है और इसी कारण जैन धर्म के समुदाय के लोगों ने कृषि-कार्य नहीं किया क्योंकि उनका मानना था कि खेती-बाढ़ी करने से अनजाने में सही लेकिन जीव हत्या का होना संभव है।
  • इस धर्म में भगवान के अस्तित्व को नहीं मानते और मूर्ती पूजा नहीं करते हालांकि यह अपने तीर्थंकरों की मूर्तिया आदि रखते हैं।
  • जैन धर्म में किसी जीव को चोट आदि न पहुँचाने के अलावा सत्य बोलना, चोरी न करना और ब्रह्मचर्य आदि का पालन करने के उपदेश दिए जाते हैं।

FAQs – अधिकांश पूछे जाने वाले प्रश्न

Q. जैन धर्म के संस्थापक कौन हैं?

Ans. जैन धर्म के संस्थापक पहले तीर्थकर ऋषभदेव (आदिनाथ) को माना जाता है।

Q. जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर कौन थे?

Ans. जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी जी थे।

Q. जैन धर्म की स्थापना कब और किसने की?

Ans. जैन धर्म की स्थापना प्राचीन काल में ही हो गयी थी जोकि प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव द्वारा की गयी थी लेकिन जैन धर्म का विस्तार मुख्य रूप से 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी के काल में हुआ।

Q. जैन धर्म की भाषा क्या थी?

Ans. जैन धर्म की प्राकृत भाषा (Prakrit language) थी।

Q. जैन धर्म के अनुसार भगवान कितने होते हैं?

Ans. जैन धर्म भगवान के अस्तिव को मानने से मना करते हैं लेकिन यह आत्मा एवं उसके पुनर्जन्म में विश्वास रखते हैं।

Q. जैन धर्म के लोग किसकी पूजा करते हैं?

Ans. जैन धर्म के लोगों द्वारा अपने तीर्थंकर के उपदेशों का पालन करते हैं।

Q. भारत में जैन धर्म के लोगों की संख्या कितनी है?

Ans. 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में जैन धर्म की कुल आबादी का महज 0.40% हैं यानिकि लगभग 44,51,000 लोग हैं।

Q. जैन धर्म आगे चलकर कितने समुदायों में बंट गया?

Ans. जैन धर्म महावीर स्वामी की म्रत्यु के बाद दो समुदायों में बंट गया जोकि दिगम्बर और श्वेताम्बर समुदाय हैं।

Q. जैन धर्म को मानने वाले राजा कौन थे?

Ans. जैन धर्म को मानने वले राजा चन्द्रगुप्त मौर्य थे।

निष्कर्ष – The Conclusion

इस लेख को यहाँ तक धैर्य-पूर्वक पढने के बाद आपने जैन धर्म (Jain religion in hindi) से जुडी अहम जानकारी को जानकार अपने ज्ञान को बढ़ाया है। जिसमे हमने जैन धर्म क्या है | जैन धर्म का इतिहास के अलावा जैन धर्म क्या है? (Jain dharm kya hai), जैन धर्म के 24 तीर्थंकर (All masters of Jainism in hindi), जैन धर्म का इतिहास (Jain dharm ka itihas), जैन धर्म का विभाजन (Jain dharm ka vibhajan), जैन धर्म के सिद्धांत (Jain dharm ke siddhant), जैन धर्म के संस्थापक (Founder of Jainism in hindi) और जैन धर्म का पतन की भी चर्चा की है।

इस लेख जैन धर्म क्या है | जैन धर्म का इतिहास के बारे में पढने के बाद यदि आपका हमारे लिए इस लेख को लेकर कोई छोटा-बड़ा सवाल या सुझाव हो तो हमें कमेंट के माध्यम से अवश्य बताएं।

इसके अलावा इस लेख (जैन धर्म क्या है | जैन धर्म का इतिहास) को पढ़कर आपने कुछ नया सीखा हो तो इस ब्लॉग-पोस्ट को नीचे दिए गए सोशल-मीडिया बटन्स के द्वारा सभी प्लेटफॉर्म्स पर जरूर शेयर करें

अन्य पढ़ें –

Leave a Reply