कागज़ का आविष्कार इतिहास | कागज कैसे बनाया जाता है 2022

नमस्कार दोस्तों, हम सभी दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण वस्तुओं में से एक कागज के बारे में तो बहुत अच्छी तरह से जानते हैं क्योंकि हम बचपन से ही कागजों से बनी किताब-कॉपियां, चार्ट आदि का इस्तेमाल करते आ रहे हैं। आज का यह आर्टिकल कागज़ (Paper) की बहुत अधिक महत्वता को देखते हुए बहुत ही रोचक एवं जानकारी भरा होने वाला है क्योंकि इस आर्टिकल के माध्यम से आप कागज़ का आविष्कार इतिहास | कागज कैसे बनाया जाता है 2022 और कागज़ से जुडी अहम जानकारी को जानने वाले हो।

हम सभी जानते हैं कि वर्तमान युग में कागज़ के बिना दुनिया का सारा काम-काज अधूरा है क्योंकि आवश्यक रूप से कागज़ का इस्तेमाल हर जगह (पढाई-लिखाई, कार्यालय, बैंक, व्यापार, अख़बार-मैगजीन एवं पकेजिंग आदि) किया जा रहा है।

कागज़ का आविष्कार एवं इतिहास – Invention of paper in hindi – History of paper in hindi

दुनिया में मौजूद लोग अपनी बुद्धि के स्तर पर हजारों वर्षों से लेखन का कार्य करते चले आ रहे हैं। जिसके चलते वह लोग लिखने के लिए आमतौर पर हड्डियों, लकडियों, बांस, कपडे आदि के अलावा ताड़पत्रों, ताम्रपत्र एवं शिलालेखों आदि का इस्तेमाल किया करते थे जिससे कि अपने द्वारा लिखे गए लेख को लम्बे समय तक संरक्षित किया जा सके। 

मौजूदा समय में कागज़ का आविष्कारक देश चीन (चाइना) को माना जाता है क्योंकि सर्वप्रथम कागज़ का इस्तेमाल चीन में किया गया था। कागज़ का आविष्कार करने वाले चीनी व्यक्ति का नाम काय लुन (Cai Lun) था। जिन्होंने यह आविष्कार 201 ईसा पूर्व ह्वान साम्राज्य के शासन काल के दौरान किया था।

काय लुन ने सहतूत, भांग और अन्य पेड़ों की छाल के रेशों की सहायता से कागज़ का निर्माण किया जोकि आज के आधुनिक कागज़ के मुकाबले उसकी क्वालिटी 50 प्रतिशत से भी कम थी लेकिन वह कागज़ चिकना, चमकीला, लचीला एवं मुलायम होता था। काय लुन के इस आविष्कार से ठीक पहले चीन और दुनियाभर में आमतौर पर बांस और रेशम के टुकड़ों से बने कपडे का इस्तेमाल लेखन के लिए किया जा रहा था जिसमे रेशम महंगी और बांस भारी और रख-रखाव में मुश्किलें पैदा करता था।

काय लुन के द्वारा पेड-पौधों की छाल को पानी के साथ मिलाकर एक मिश्रण तैयार करके उसके अन्दर एक छन्नी डुबोई जाती थी और फिर उस छन्नी को धुप में सुखाकर कागज़ तैयार किया जाता था। हल्के कागज़ की यह खोज उस समय काफी प्रभावशाली, अति-उपयोगी एवं एक क्रांतिकारी खोज थी। लेकिन शुरूआती समय में चीन ने कागज़ बनाने का यह तरीका पूरी दुनिया से छिपाकर रखा और इसी कारण कागज़ एक बहुत लम्बे समय तक चीन में ही सीमित रहा था।

लेकिन कुछ समय बाद बाहरी दुनिया को कागज़ बनाने का यह तरीका पता चला और इसका इस्तेमाल धीरे-धीरे पूरी दुनिया में फैलने लगा। जिसके बाद अलग-अलग प्रकार के पेड-पौधों को लेकर अलग-अलग तरह से कागज़ बनाना जाने लगा और कागज़ बनाने की यह तकनीक बेहतर होती चली गई और कागज बनाने में बहुत आसानी होने लगी। काय लिन द्वारा कागज़ बनाने की इसी विधि के फलस्वरूप आगे के वर्षों में कागज बनाने के लिए लगातार वृद्धि होती रही और इसी विधि के आधार पर आज दुनियाभर में उच्च-स्तरीय एवं बहुत ही खूबसूरत कागज़ देखने को मिलते हैं।

लेकिन कागज़ जगत में क्रांति 18वीं सदी में आयी जिसमे कनाडा के खोजकर्ता चार्ल्स फेनेर्टी (Charles Fenerty) ने लकड़ी और पानी के मिश्रण द्वारा बनी लुगदी (Pulp) में फ्री ब्लीच का प्रयोग किया ताकि कागज़ का रंग पूरी तरह से सफ़ेद हो सके। जिसके बाद यह सफ़ेद रंग के कागज़ अखबार और मेगज़ीन के रूप में बहुत अधिकता में छपने लगे।

बता दें कि उपर्युक्त लेख के विपरीत आज भी कुछ इतिहासकार एवं विशेषज्ञ मानते हैं कि 3500 ईसा पूर्व कागज़ का बनाने का पहला प्रयोग मिश्र में हुआ था जिसमे पेपिरस नामक पौधों (Papyrus plants) से कागज़ बनाया जाता था और इसी पौधे के नाम पर इसका नाम पेपर (Paper) रखा गया है।

भारत में कागज़ का निर्माण –

विशेषज्ञों के अनुसार भारत में कागज़ का चलन सातवीं सताब्दी में ही प्रारम्भ हो गया था लेकिन उस दौरान भारत में कागज़ व्यापक रूप से नहीं फैला पाया था। इस कागज़ को पूरे भारत में फैलने के लिए बारहवीं सताब्दी का समय लगा जिसके बाद कागज़ का इस्तेमाल भारत में बढ़ने लगा था।

बता दें कि भारत की सबसे पुरानी कागज़-मिल 200 वर्षों से भी पुरानी है। जिसकी शुरुआत ब्रिटिश सरकार द्वारा वर्ष 1812 में पश्चिम बंगाल के सेरोपुर में की गई थी लेकिन उस दौरान भारत के अधिक विकसित न होने के कारण कागज की बहुत कम खपत थी। इसी के चलते इस कागज़ मिल को उस दौरान सफलता नही मिली थी लेकिन वर्तमान समय में भारत कागज उत्पादक देश के रूप में दुनियाभर में 15वें स्थान पर आता है।

कागज़ कैसे बनाया जाता है – How to make paper in hindi

आधुनिक जगत में कागज़ बनाने के लिए सेलूलोज़ फाइबर युक्त पेड-पौधे एवं घास-फूस के अलावा पुराने कपडे एवं खराब कागज़ का इस्तेमाल किया जाता है। बता दें कि दुनियाभर के जगलों में अनैकों प्रकार के पेड-पौधे पाए जाते हैं लेकिन कागज़ बनाने के लिए उन्हीं पेड़ों (लकड़ी) का इस्तेमाल किया जाता है; जिनकी कोशिकाओं की भित्ति में अधिक मात्रा में सेलूलोज़ (एक प्रकार का कर्बोहाइड्रेट) पाया जाता है। मतलब सेलूलोज़ की अधिकता के कारण कागज़ स्वच्छ एवं सुन्दर तैयार हो पाता है।

बता दें कि कागजों की रद्दी और कपड़ों पर शत-प्रतिशत सेल्यूलोस पाया जाता है। इसी कारण इन्हें रीसायकल कर दोबारा से एक अच्छी क्वालिटी का कागज तैयार कर लिया जाता है। कागज़ बनाने के लिए अधिक सेलूलोज़ की मात्रा वाले पेड चुने जाते हैं। जिन पेड़ों में सेलूलोज़ फाइबर के अलावा अन्य खनिज, लवण एवं रंग पदार्थ सूक्ष्म मात्राओं में मौजदू होते हैं जोकि कई प्रकार की विधियों द्वारा सेलूलोज़ से बिलकुल अलग कर दिए जाते हैं। जिसके बाद ही एक अच्छी क्वालिटी का कागज बन पाने का पदार्थ या घोल तैयार हो पाता है।

इस लेख को ज्यादा लम्बा न खींचते हुए कागज़ बनने को कुछ मुख्य बिन्दुओं द्वारा समझते हैं –

  • कागज़ बनाने के लिए गए सबसे पहले जंगलों से भारी वाहनों के द्वारा पेड़ों को फैक्ट्रीयों में लाया जाता है। जहाँ उन पेड़ों की ऊपरी छाल को निकालकर उन्हें छोटे-छोटे एवं पतले टुकड़ों में बदल लिया जाता है।
  • इसके बाद इन लकडियों के टुकड़ों को डाइजेस्टर टैंक (डाइजेस्टर टैंक मतलब रासायनिक पम्पिंग और घुले हुए फाइबर स्टीम सेक्शन – कच्चे माल लकड़ी, घास, रद्दी एवं कपडे आदि को पकाने के लिए काम में लिया जाता है) में डाल दिया जाता है जोकि एसिटिक सोल्यूशन के साथ लगभग 160-175 डिग्री सेल्सियस ताप पर उबाला जाता है। इस टैंक में उबलने के कारण लकड़ियों के इन छोटे-छोटे टुकड़ों में मौजूद पदार्थ जैसे कि लिग्निन और पेक्टिन के साथ अन्य खनिज लवणों को अलग किया जाता है।
  • इसके बाद प्राप्त लकड़ी के रेशों को पानी में अच्छी तरह से साफ़ कर बचे कुचे एसिटिक सोल्यूशन को अभी अलग कर लिया जाता है।
  • इसके बाद इन लकडियों के रेशों की क्लोरीन फ्री ब्लीचिंग की जाती है; जिसमे अधिक रूप से डेंसिटी बढ़ाने के लिए कैल्शियम कार्बोनेट मिलाकर लुगदी तैयार कर लेते हैं।
  • इसके बाद इस लुगदी को पानी की अधिक मात्रा के साथ मिलकर एक घोल के रूप में तैयार कर लिया जाता है जोकि कागज बनाने की मशीन में भेज दिया जाता है।
  • इस घोल के मशीन के अन्दर जाने के बाद मशीन के बड़े-बड़े रोलर इस घोल में से लगभग 90 प्रतिशत पानी को अलग कर कागज बनाना शुरू कर देते हैं और बचा हुआ पानी लगातार रीसायकल होता रहता है। कागज बनाने की इस मशीन में कई रोलर लगे होते हैं जोकि गीले कागज को अपनी ताप से सूखा बनाकर एक रोलर में इकठ्ठा करते रहते हैं।

कागज़ के उपयोग – Use of paper in hindi

यदि कागज़ के उपयोग की बात करें तो यह बात किसी से छिपी नहीं है कि कागजों के उपयोग (Use of papers) के बिना हमारी दुनिया का काम-काज पूरी तरह से अधुरा है। तो चलिए अब कागज़ के कुछ महत्वपूर्ण उपयोगों को नीचे दी गई बिन्दुओं के द्वारा समझते हैं –

  • अख़बार एवं मैगजीन के रूप में कागज का पूरी दुनिया में सबसे अधिक मात्रा में उपयोग किया जाता है।
  • स्कूल एवं कार्यालयों में कागज़ किताब, कोपियाँ, चार्ट, विसिटिंग कार्ड्स, लिफाफे आदि के रूप में उपयोग किया जाता है।
  • पैकेजिंग एवं आवश्यक कार्य के रूप में कागज़ अधिकता में इस्तेमाल किया जाता है जैसे कि दवाइयों की पैकिंग, इलेक्ट्रॉनिक सामान की पैकिंग, खाने-पीने के सामान की पैकिंग, खेलने एवं मनोरजंन से जुड़े सामान की पैकिग आदि।

FAQs – अधिकतर पूछे जाने वाले प्रश्न

Q. कागज़ का आविष्कार कब और और किसने किया?

Ans. कागज़ का आविष्कार काय लुन (Cai Lun) ने 201 ईसा पूर्व में किया था।

Q. कागज़ का आविष्कार सर्वप्रथम किस देश में हुआ?

Ans. कागज़ का आविष्कार सर्वप्रथम चीन में हुआ था।

Q. भारत में कागज़ का निर्माण कब हुआ?

Ans. इतिहासकारों के अनुसार भारत में कागज़ का निर्माण 7वीं सदी में प्रारम्भ हो गया था। लेकिन 14वीं सताब्दी में इसके निर्माण होने के प्रमुख रूप से प्रमाण मिलते हैं लेकिन इसका विस्तार 18वीं सदी में होना प्रारम्भ हुआ था।

Q. भारत में कागज़ का प्रचलन कब हुआ?

Ans. भारत का में कागज़ का प्रचलन 18वीं सदी के मध्य के बाद हुआ था।  

Q. भारत का सबसे बड़ा कागज उत्पादक राज्य कौन सा है?

Ans. भारत का सबसे बड़ा कागज़ उत्पादन राज्य महाराष्ट्र है।

Q. कागज़ का आविष्कार महत्वपूर्ण क्यों था?

Ans. कागज़ का आविष्कार कई मायनों में महत्वपूर्ण था क्योंकि इसके आविष्कार से पहले लोगों द्वारा लिखे गए लेख को व्यवस्थित करने में बहुत अधिक मुश्किलें पैदा होती थी।

Q. कागज़ कौन से पेड़ से बनते हैं?

Ans. कागज़ मुख्य तौर पर सेलूलोज़ फाइबर की अधिक मात्रा पाए जाने वाले पेड़ों से बनता है जैसे कि चीड, बांस, स्प्रूस एवं विविध प्रकार की घास-फूस आदि से कागज बनाए जाते हैं।

Q. कागज़ का कारखाना कहाँ है?

Ans. यदि भारत की बात करें तो भारत के कई राज्यों में कागज़ के कारखाने मौजूद हैं जैसे कि महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश पश्चिम बंगाल कर्नाटका और मध्य प्रदेश आदि

Q. कागज़ कितने प्रकार के होते हैं?

Ans. दुनियाभर में जरूरत के अनुसार कागज़ कई प्रकार के बनाए जाते हैं जैसे कि किताबों के कागज़, अखबारों के कागज़, चित्रकारी के कागज़ और इंकजेट कागज आदि

Q. कागज़ से क्या-क्या बनता है?

Ans. कागज़ से दुनियाभर में अनैकों प्रकार की अनगिनित चीजें बनती हैं जैसे कि किताबें, कोपियाँ, मगज़ीन्स, अख़बार, पम्प्लेट्स एवं विभिन्न प्रकार के डिब्बे आदि

Q. कागज़ की बचत क्यों करनी चाहिए?

Ans. कागज़ की बचत करने की ओर अग्रसर दुनिया में मौजूद सभी व्यक्तियों को कठोर कदम उठाना चाहिए क्योंकि अधिकांश कागज़ हमारी प्रकृति की अनमोल देन पेड-पोधों के माध्यम से बनाए जाते हैं। बता दें कि कागज़ का उत्पादन पिछले कुछ वर्षों में बहुत तेजी से बढ़ा है जिससे सीधे तौर पर हमारी हरी-भरी प्रकृति को नुकसान पहुँच रहा है।

निष्कर्ष – The Conclusion

इस लेख में इतना ही जिसमे हमने कागज़ का आविष्कार इतिहास | कागज कैसे बनाया जाता है 2022 के अलावा हमने कागज़ का इतिहास (Kagaz ka itihas), कागज़ का आविष्कार कब और किसने किया? (Kagaz ka aavishkar kab aur kisne kiya), कागज का आविष्कार किस देश में हुआ? (Kagaz ka aavishkar kis desh me hua), कागज़ का आविष्कार कहाँ हुआ? (Kagaz ka aavishkar kahan hua), भारत में कागज़ का आविष्कार कब हुआ? (Bharat me kagaz ka aavishkar kab hua), लकड़ी से कागज़ कैसे बनता है? (Lakdi se kagaz kaise banta hai), बांस से कागज़ कैसे बनता है? (Bans se kagaz kaise banta hai), कागज़ किस पेड़ से बनता है? (Kagaz ki ped se banta hai), पेपर कैसे बनता है? (paper kaise banta hai) आदि को भी विस्तार से समझाने का प्रयास किया है।

इस लेख (कागज़ का आविष्कार इतिहास और इसे कैसे बनाया जाता है 2022) को यहाँ तक पूरा पढने के बाद इस लेख से जुड़ा यदि आपके मन में किसी भी प्रकार का सवाल या सुझाव हो तो हमें नीचे कमेंट करके जरूर बताएं।

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